भूमि एक सीमित संसाधन होने के साथ-साथ दुर्लभ संसाधन बनती जा रही है। उपलब्ध भूमि की तुलना में भूमि की माँग कई गुणा बढ़ गई है। बढ़ते जनसंख्या दबाव एवं मानवीय गतिविधियों के विविधीकरण के कारण भूमि उपयोग प्रारूप में गतिशीलता स्वाभाविक है। भूमि उपयोग प्रारूप मानव द्वारा भूमि का विभिन्न कार्यों में लिए गए उपयोग को उल्लेखित करता है। भौतिक एवं मानवीय कारक भूमि उपयोग प्रारूप को निर्धारित करते हैं। भूमि उपयोग प्रारूप सामाजिक-आर्थिक विकास एवं पर्यावरण को विशेष रूप से प्रभावित करता है। जनसंख्या वृद्धि के फलस्वरुप समय के साथ भूमि उपयोग प्रारूप में परिवर्तन हुआ है। यह अ/ययन झुंझुनूं जिले में वर्ष 1961-62 से 2021-22 की अवधि में बढ़ती हुई जनसंख्या वृद्धि एवं भूमि उपयोग प्रारूप की गतिशीलता के अ/ययन पर आधारित है। इस अवधि में जिले की जनसंख्या में लगभग 197 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जिले में नगरीकरण बढ़ा है एवं लोगों की व्यावसायिक संरचना में भी बदलाव हुए हैं, जिसके फलस्वरूप भूमि उपयोग प्रारूप में परिवर्तन हुआ है। जिले में चारागाह व गोचर भूमि, कृषि योग्य बंजर भूमि, बंजर एवं कृषि अयोग्य भूमि में कमी आई है। पारिस्थितिकीय संतुलन के लिए आवश्यक वनों के भौगोलिक क्षेत्र में कमी आज भी बनी हुई है। इसके अलावा शुद्ध बोए गए क्षेत्र में भी कमी हुई है। जिले में परती भूमि का अत्यधिक विस्तार हुआ है। प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि एवं नगरीकरण के कारण गैर-कृषि कार्यों में भूमि उपयोग अत्यधिक बढ़ा है। जिले में भूमि उपयोग प्रारूप के सतत विकास एवं प्रबंधन के लिए आवश्यक है कि सार्वजनिक संपदा संसाधन जैसे-वन एवं चारागाह भूमि के विस्तार एवं संरक्षण को महत्त्व दिया जाए। जल संसाधन के संरक्षण एवं संवर्द्धन के मा/यम से निवल एवं सकल कृषि भूमि का विस्तार कर बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। इस अ/ययन में द्वितीयक आँकड़ों का प्रयोग किया गया है।